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  :: भारतगतप्राणा निवेदिता
   

भगिनी निवेदिता पश्चिम से भारत में एक प्रकाश-पुंज की तरह आयीं। भारत की गौरवमय परंपराओं और अथाह ज्ञान का अनुभव उन्होंने अपने सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से परे जाकर किया। उनके लेखन और वक्तव्य पाठकों एवं श्रोताओं को सकारात्मक प्रेरणा और ऊर्जा से भर देते थे। उनके सभी विचारों और कार्यों का एक ही प्रयोजन था - अपने गुरु स्वामी विवेकानन्द जी के स्वप्नों को साकार करते हुए एक भव्य और महान भारत का पुनर्निमाण करना। इस एक महान उद्देश्य को लेकर उन्होंने भारतवासियों को एक छत्र के नीचे संगठित करने के लिए प्राणप्रण प्रयत्न किया।

उनका उद्देश्य भारत को अँग्रेजों से केवल राजनैतिक स्वतंत्रता दिलाना नहीं था, अपितु वे देश को सभी क्षेत्रों में सशक्त बनाना चाहती थीं। उन्हें इस देश की दुर्बलता के कारणों का पूरी गहरायी के साथ ज्ञान था और वे उसके निदान के उपायों से भी पूरी तरह परिचित थीं। भारत में रहते हुए उन्होंने अपने त्यागपूर्ण और साधनामय जीवन द्वारा भारत की असीम और असाधारण आध्यात्मिक और सांस्कृतिक ऊर्जा का अनुभव किया था और वे चाहती थीं कि भारतवासी भी इस अनुभूति के भागीदार बने। निवेदिता के जीवन को स्वामीजी ने बहुत सावधानी और प्रयत्नपूर्वक गढ़ा था और ऐसा करते हुए उन्होंने जाने-अनजाने में राष्ट्र के प्रति अपने उत्कट प्रेम की भावना निवेदिता के जीवन में संचारित कर दी थी। स्वामी विवेकानन्द का यह प्रयास बहुत सार्थक सिद्ध हुआ। उन्होंने अनुभव कर लिया था कि निवेदिता ही उनके जीवन की सच्ची सन्देशवाहिका रहेगी। निवेदिता के जीवन में भारत के प्रति प्रेम उन्मान्द की अवस्था में पहुँच गया था और अपने इस भारतप्रेम को जनसामान्य में वितरित करने के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। आयरलैण्ड में जन्मी, पली-बढ़ी निवेदिता भारतमाता की सच्ची सेविका बन गयी और सही अर्थो में भारतगतप्राणा हो गयी।

 

लेखक डॉ. ओमप्रकाश वर्मा का परिचय :

डॉ. ओमप्रकाश वर्मा (1949) एम.ए., पी.एच.डी. (मनोविज्ञान) पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर में क्षेत्रीय अध्ययन एवं अनुसंधान अध्ययनशाला में प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, रेक्टर, संकायाध्यक्ष, कार्यपरिषद् के सदस्य, निदेशक—प्रबंध संस्थान; संचालक— महाविद्यालय विकास परिषद आदि में अपनी सेवाएँ दीं। तत्पश्चात् ‘छत्तीसगढ़ निजी विश्वविद्यालय विनियामक आयोग’ के अध्यक्ष रहे; अब ‘स्वामी विवेकानंद चेयर’ में चेयर प्रोफेसर हैं। प्रो. वर्मा के 40 से अधिक शोधपत्र राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय शोधपत्रों में प्रकाशित हैं

तथा 23 विद्यार्थियों ने उनके मार्गदर्शन में पी-एच.डी./डी.लिट. की उपाधि अर्जित की हैं। वे विवेकानंद विद्यापीठ, रायपुर के संस्थापक-सचिव भी हैं। उनके पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे तथा तीन भाई रामकृष्ण मिशन में संन्यासी रहे।

 

 

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